बंटवारे के अनसुलझे सवाल..बेमौके की बात

कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को 1947 के बंटवारे के अनसुलझे सवाल बता कर एक बार फिर अपने बयान से तूफान खड़ा कर दिया। पहलगाम हमला कोई आम घटना नहीं थी, इसमें 28 बेकसूर लोग मारे गए। आतंकियों ने धर्म पूछकर, “कलमा” पढ़वाकर और ID चेक करके गोलियां बरसाईं। ये बर्बरता दिलों को चीर गई। देश दुनिया में गुस्सा है।

ऐसे नाजुक वक्त में अय्यर का बंटवारे की बात छेड़ना सिर्फ बेमौके की बात नहीं है, बल्कि पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। वैसे भी कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में कमजोर प्रदर्शन के बाद अपनी साख बचाने की जद्दोजहद कर रही है और कश्मीर में उसकी विश्वसनीयता पहले ही कमजोर है। उस पर अय्यर का बयान कांग्रेस को परेशान करने वाला है।

आतंकवाद पर कांग्रेस की अधिकारिक लाइन हमेशा से आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख की रही है। राहुल गांधी खुद वहां पहुंचे और पार्टी ने इस हमले की कड़ी निंदा की और इसे आतंकवाद की क्रूरता बताया। सवाल ये है कि आखिर बंटवारे जैसे पुराने जख्मों को कुरेदकर अय्यर को क्या मिलेगा.? उल्टे कश्मीर में अपनी जगह बनाने कांग्रेस की कोशिशें कमजोर होंगी।

जम्मू.कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद वहां पर्यटन बढ़ा, आतंकवाद कम हुआ, और हमले के वक्त पहलगाम में पर्यटकों का पीक सीजन चल रहा था, लेकिन इस हमले ने उस छवि को झटका दिया। खुद कश्मीरी अवाम इस हमले से आहत है। स्थानीय लोगों ने टॉर्च रैली निकालकर आतंकवाद के खिलाफ अपना गुस्सा दिखाया, जिसमें पड़ोसी मुल्क को साफ संदेश है कि वो पाकिस्तान की सरपरस्ती में आतंकवाद नहीं, भारत के साथ रह कर घाटी का विकास चाहते हैं।

गौर करें, पाकिस्तान इस हमले में अपने हाथ होने से साफ मुकर रहा है। वहां के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ “निष्पक्ष जांच” की बात कर रहे हैं। उनके रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ विदेशी मीडिया में दावा ठोक रहे हैं कि पाकिस्तान “अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों की जांच” में सहयोग करेगा। ये सब उनकी पुरानी चाल है, जिससे वो दुनिया की आंखों में धूल झोंकते हैं।

हकीकत ये है कि पाकिस्तान दशकों से कश्मीर में आतंकवाद को हवा देता रहा है। ऐसे में अय्यर का बंटवारे वाला बयान पाकिस्तान को और बहाना दे सकता है। वो इसे “कश्मीर का अनसुलझा मसला” बताकर अपनी हरकतें जायज ठहराने की कोशिश करेंगे। हालांकि पहलगाम आतंकी हमले को बंटवारे का नतीजा बताना, मणिशंकर अय्यर की नजर से भले ही ऐतिहासिक रूप से सही हो सकता है, लेकिन ये बात कहने का सही वक्त नहीं था।

अय्यर साहब ये वक्त इतिहास पर बहस का नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाने का था, और आप इसमें चूक गए या जानबूझ कर ऐसा कहा..? बात साफ है, कश्मीर का दर्द पुराना है, आतंकवाद का जवाब नफरत या बहस नहीं, बल्कि इंसानियत और भाईचारा है। उम्मीद रखिए कश्मीर की खूबसूरती और वहां के लोगों का जज्बा फिर से जीतेगा, ये भी ताकीद रखे कि कश्मीर हमारा है,और इसे बचाने के लिए पूरी दुनिया भारत के साथ है।

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